भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोई दुआ कोई उम्मीद बर नहीं आती / कांतिमोहन 'सोज़'

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:18, 13 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कांतिमोहन 'सोज़' |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चचा ग़ालिब से चुहल

कोई दुआ कोई उम्मीद बर नहीं आती
यहाँ से अब कोई सूरत नज़र नहीं आती ।

वो इब्तिदा थी कि आती थी हाले-दिल पे हँसी
ये इन्तिहा है किसी बात पर नहीं आती ।