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कौन यहाँ पर ख़ास है, कौन यहाँ पर आम / उत्कर्ष अग्निहोत्री
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कौन यहाँ पर ख़ास है, कौन यहाँ पर आम,
जो जितना नीचे गिरे, उतना ऊँचा दाम।
देखो कब बुझ पाए है, अब होठों की प्यास,
जिसे उठाया हाथ में, टूट गया वो जाम।
स चमत समझों हर तरफ, मिले अगर सम्मान,
शोहरत के कारण सभी, करते दुआ सलाम।
डसने फिर हालात को, नहीं किया स्वीकार,
फिसमत के सर आज भी, आएगा इल्ज़ाम।
बता रहीं ख़ामोशियाँ, उसके दिल का हाल,
कितना ही उस शख़्स के, अन्दर है तूफान।