भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कौने नगर से ऐल रे जोगिया / अंगिका लोकगीत

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:58, 27 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKCatAngikaRachna}} <poem> प्रस्तुत गी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रस्तुत गीत में पिता द्वारा शिव के साथ गौरी का विवाह करने से इनकार करने पर गौरी को बलपूर्वक विवाह कर ले जाने की धमकी दी गई है।

कौने नगर सेॅ ऐल रे जोगिया, कहँमाहिं धैल धियान हे।
किनका दरबाजा चढ़ि बैठले रे जोगिया, माँगै गौरी बिआह हे॥1॥
दूरहिं देस सेॅ ऐल रे जोगिया, गाछ तर धैल धियान हे।
कवन बाबू दरबाजा चढ़ि बैठलें रे जोगिया, माँगै गौरी बिआह रे॥2॥
घरअ पिछुअरबा में डोमरा<ref>डोम</ref> रे भैया, बूनि देहो अरखा<ref>बड़ा; सादा और नया, जिसका व्यवहार नहीं हुआ हो; संभव है कि ‘अखरा’ का वर्ण अनुरणानात्मक प्रयोग</ref> पेटार<ref>बाँस की फट्टियों से बुनी हुई ढक्कनदार पिटारी</ref> हे।
ओहिं पेटरिया में गौरी नुकायब<ref>छिपाऊँगा</ref>, जोगिया घर घूरि जाय हे॥3॥
तोड़ब अहुती<ref>पौती का अनुरणानात्मक प्रयोग</ref> तोड़ब पौती<ref>मूँज और सींक की छोटी पिटारी</ref> तोड़ब अरखा पेटार हे।
बीचे दरबाजा पर नटुआ नचायब, लै जयब गौरी बिआह हे॥4॥

शब्दार्थ
<references/>