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कौशल्या / पहलोॅ खण्ड / विद्या रानी

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कौशल देश केरोॅ राजकुमारी,
दशरथ प्यारी राम महतारी ।
कौशल्या छेली अति सयानी,
नै तेॅ बनतियै की पटरानी ?

सम्यक बुद्धि सम्यक विचार,
केकरोॅ सें नै करेॅ कचार ।
सुन्दर सुभग सौम्य छै आनन,
पुष्पित पल्लवित जेना कानन ।

पूर्व जनम केरोॅ मनु शतरूपा ।
दशरथ कौशल्या के धरलकै रूपा
करि तपस्या पैलकी वरदान,
परब्रह्म होतै हुनकोॅ संतान ।

राजा दशरथ छेलै तेजस्वी,
दसराज्ञ युद्ध जीती बनलै यशस्वी ।
राक्षस रावण मनेमन डेराय,
दशरथ सन सुतनय होय जाय ।

सुनलेॅ छेलै वैं आकाशवाणी
दशरथ सुत सन होतै हानि
डरलोॅ मोॅन छेलै राक्षस रावण
करी लेलकै कौशल्या के अपहरण

गेलै अयोध्या सेना समेत,
कौशल्या लै केॅ आनलोॅ देश ।
ण्क मच्छ केॅ लेलकोॅ बोलाय,
सौंपी हुनका निश्चिन्त होलै भाय ।

ब्रह्मा जी तेॅ छेलै सतर्क,
आपनोॅ वर केॅ देखी प्रत्यक्ष ।
गेलै रावण वेश बनाय,
मच्छ सें कौशल्या लेलकै घुराय ।

बड़का सन्दूकोॅ में ओकरा राखलको
लै के चललोॅ हुनी ब्रह्म लोक
ऊ तेॅ कुहकी खूब कानलकोॅ,
जेना डुबली छेलै शोक ।

ब्रह्मा धरती पर पहुँचैलकै,
वनो में संदूक राखलकै ।
विधना के विधान पुरावै लेॅ,
सबठो निश्चित काज करलकै ।

वनोॅ में गूंजलोॅ कौशल्या रुदन,
ऊहाँ अयलोॅ छेलै सुमंत ।
कानवोॅ सुनि लगैलकोॅ जोर,
खोली संदूक पोछलकोॅ लोर ।

कौशल्या नें सुमंत केॅ कहलकोॅ,
पितृ गृह में देहु पहुँचाय ।
देखी पुत्राी के ऐना अयलोॅ,
पिता रहलै अकचकाय ।

के छिकोॅ कंड सें अयला छौ,
हमरी बेटी के कहाँ पैयलोॅ छौ ।
वनोॅ में संदूकोॅ में पयलेॅ छी,
अयोध्या सें हम्में अयलोॅ छी ।

पिता नें फिनु देलकोॅ आदेश,
सुमंत लै केॅ गेलोॅ संदेश ।
लै लेॅ आयलोॅ अयोध्या नरेश,
लै केॅ गेलोॅ आपनोॅ देश ।

वर मागनें छेलै रावण,
दशरथ नै पावेॅ पुत्रा धन ।
होलै तेॅ वही वरोॅ के बात,
पुत्रोष्टि यज्ञ संे बनलै तात ।

महागहन छै इ कथा,
परब्रह्म के जन्मोॅ के व्यथा ।
नर लीला के यहै विधान छै,
रावण कंस सभै समान छै ।

कौशल्या बनली रामोॅ के भाय,
जिनगी भर दुख पैलकेॅ माय ।
पुत्रा आरू पति वियोग सहलकी,
दुख समुद्र मं डुबली जाय ।

जखनी प्रभु जी परगट होलोॅ छेलै,
माता नें दर्शन पैनें छेलै ।
परम ब्रह्म के रूप देखी,
शिशु लीला लेॅ प्रार्थना करनें छेलै ।

बाल रूप में प्रभुजी अयलोॅ,
माता के संग सब सुख पैयलकोॅ ।
अयोध्या नरेश के तीनो रानी,
चार पुत्रा संग आनंद मनैलकोॅ ।

राम, भरत, लक्ष्मण, शत्राुघ्न,
कौशल्या, कैकेयी, सुमित्रा के धन ।
संग-संग खैबोॅ आरू खेलबोॅ,
माता-पिता केॅ हर्षित करबोॅ ।

राजमहल गूंजै किलकारी,
मगन मन तीनों महतारी ।
राजा दशरथ के जीवन धन्य,
प्रभु कृपा सें मिललेॅ पुत्रा धन ।

कौशल्या के हृदय उदार,
एकै रं समझै सुत चार ।
आत्मा में सोचै हुनका ब्रह्म,
फिनु माँगै कि काटी देॅ भरम ।

एक दिन देखलकोॅ दू ठियाँ राम,
पालना मं आरू भंसा ठाम ।
भोग लगैतें व्यंजन प्रकार,
अकचकाय गेलै महतार ।

विविध भाँति सें करी दुलार,
दशरथ सुख पावै संसार ।
तीनों रानी हुनकोॅ अनुगामनी,
स्नेह सें भरलोॅ प्यारी सहधर्मिणी ।