भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्या कहा ? / पूनम गुजरानी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:52, 9 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पूनम गुजरानी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
गाँव से आ रहे हो।
मेरे लिए लेते आना
घर के मोङ पर बैठे
आधा दर्जन दादाओं की
झोली भर दुआएँ।
बाजार से ले आना
खट्टे मीठे लाल पीले
मुठ्ठी भर बेर।
लेते आना
मास्टर की फटकार
दादी का ओलंभा
भुआ का गुस्सा
दोस्त का उपालंभ
वर्षों हो गए
शहर की नकली मिठास से
मुझे शुगर हो चली है।