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क्या बात करें? / बुद्धिनाथ मिश्र

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घर की बात करें वे जो घर वाले हैं
हम फुटपाथों पर बैठे क्या बात करें?

रोज़-रोज़ सूरज का गुस्सा झेलें हम
आँधी-पानी, ठंड, आग से खेलें हम
बिगड़ी हुई हवा हो या दानी बादल
सबने हमें उजाड़ा, साक्षी गंगाजल

मौसम जिनकी मुट्ठी में, वे ख़ुश हो लें
हम मौसम की फिकरों की क्या बात करें?

काश की अपने आँगन सूर्यमुखी खिलता
एक अदद बिस्तरा थके तन को मिलता
पाँव तले निज धरती, सिर पर छत होती
सड़क किनारे चिथड़ों की झुग्गी डाले
लोग बया के खोतों की क्या बात करें?

यह दुनिया है ज़िन्दा लाशों की दुनिया
सीलन, बदबू, मौत, तमाशों की दुनिया
निगल गई योजना-नदी की बाढ़ जिसे
उस बस्ती के अजब, अनूठे हैं किस्से

ठाँव जिन्हें मिल सका नहीं नरकों में भी
वे सपने नव स्वर्गों की क्या बात करें?

शब्दार्थ :
गंगाजल=साक्ष्य की सत्यता के लिए बाइबिल और कुरान की तरह गंगाजल को प्रमाण माना जाता है।
काशी-करवट=काशी का एक स्थल जहाँ लोग सदगति की आशा में आरे से कटकर जान देते थे।

(रचनाकाल : 07.09.1982)