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क्यूँ खौफ़ इस क़दर है तुम्हें हादसात का / सिया सचदेव
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क्यूँ खौफ़ इस क़दर है तुम्हें हादसात का
इक दिन खुदा दिखायेगा रस्ता निजात का
ये तजरबा बताता हैं मुझको हयात का
भरता नहीं है ज़ख्म कभी कड़वी बात का
बन्दे हैं सब खुदा के बनाये हुए हजूर
झगडा ही बेसबब है यहाँ ज़ात_पात का
रूठे हुए सनम को मनाऊं मैं किस तरह
जब उसको एतबार नहीं मेरी बात का
ऐसा असर कहा है किसी की दुआओं में
जैसा शरफ़ मिला है मुझे माँ के हाथ का
सच्चाई पे चलना नहीं आसान हैं इतना
हम ने चुना है रास्ता खुद मुश्किलात का
हंस हंस के सहते जाओ शबे ग़म की तल्खियाँ
लेना है तुम को लुत्फ़ जो इस कायनात का
बन जाओ इस तरह से मोहिब्बे रहीमो राम
झगडा भुला दो आज सभी धर्मो ज़ात का
रखना हर एक कदम को यहाँ फूंक फूंक के
रस्ता है ज़िन्दगी का सिया मुश्किलात का