भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्यूँ हिज्र के शिकवे करता है क्यूँ दर्द के रोने रोता है / 'हफ़ीज़' जालंधरी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:19, 25 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='हफ़ीज़' जालंधरी }} {{KKCatGhazal}} <poem> क्यूँ ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्यूँ हिज्र के शिकवे करता है क्यूँ दर्द के रोने रोता है
अब इश्क़ किया तो सब्र भी कर इस में तो यही कुछ होता है

आग़ाज-ए-मुसीबत होता है अपने ही दिल की शामत से
आँखों में फूल खिलाता है तलवों में काँटें बोता है

अहबाब का शिकवा क्या कीजिए ख़ुद जाहिर ओ बातिन एक नहीं
लब ऊपर ऊपर हँसते हैं दिल अंदर-अंदर रोता है

मल्लाहों को इल्ज़ाम न दो तुम साहिल वाले क्या जानो
ये तूफाँ कौन उठाता है ये कश्ती कौन डुबोता है

क्या जानिए ये क्या खोएगा क्या जानिए ये क्या पाएगा
मंदिर का पुजारी जागता है मस्जिद का नमाज़ी सोता है

ख़ैरात की जन्नत ठुकरा दे है शान यही ख़ुद-दारी की
जन्नत से निकाला था जिस को तू उस आदम का पोता है