भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्योंकि आदमी हैं हम-2 / हरीश बी० शर्मा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:08, 19 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश बी० शर्मा |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <Poem> चाहता हूँ प्र...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चाहता हूँ प्रभु
फिर तुम्हें एक लंबा वनवास मिले
अपने परिवार से होकर अलग
तुम वन-वन भटको
रात-रात भर सीते-सीते करते जागो
फिर जब सीता मिले
उसको भी त्यागो