भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्रोध से भरा है / रुस्तम

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:33, 7 जून 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रुस्तम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poe...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्रोध से भरा है
क्योंकि वह खरा है
जैसे किसी ज़माने में
खरा होता था नदियों, तालाबों और झीलों का पानी
और पशु-पक्षी आते थे उसे पीने
और नहाने उसमें,
सहज ही उतर जाते थे उसके प्रांगण में
उस पर भरोसा करते हुए
और फिर उसी सहजता से निकलकर चले जाते थे
उसे वैसा ही खरा छोड़कर।

ये एक गुज़रे हुए ज़माने की बातें हैं।
उसे याद करने वाले भी बस कुछ ही बचे हैं
और जल्द ही वे भी चले जाएँगे
उसी के साथ जो अब
क्रोध से भरा है
और ठगा-सा खड़ा है।