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खंड-23 / पढ़ें प्रतिदिन कुण्डलियाँ / बाबा बैद्यनाथ झा

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रहते हैं कुछ जगत में, अति धनाढ्य सम्भ्रान्त।
भूख गरीबी से भला, क्यों हैं कुछ आक्रान्त?
क्यों हैं कुछ आक्रान्त, बनी है अगर विषमता।
क्या निष्ठुर भगवान, नहीं है उनमें ममता?
नहीं किसी का दोष, कर्मफल सब हैं चखते।
पाकर निज प्रारब्ध, जीव सब जग में रहते।।
 
देकर हिन्दू के लिए, जीवन का बलिदान।
संस्थापक जनसंघ के, थे वे बहुत महान।।
थे वे बहुत महान, वतन के थे रखवाले।
रहे एक यह देश, बात यह कहने वाले।।
हो समान अधिकार, स्वप्न यह मन में लेकर।
चले गये वे स्वर्ग, प्राण भी अपने देकर।।

दी थीं जो कुर्बानियाँ, वीरों ने सह पीर।
देखो कैसे बन गया, एक नया कश्मीर।।
एक नया कश्मीर, मिली असली आजादी।
पूरा भारत एक, हर्ष में पूरी वादी।।
कसमें मेरे वीर, शहीदों ने जो ली थीं।
पूर्ण हुआ वह स्वप्न, कई ने जानें दी थीं।।
 
करते हम प्रारम्भ जब, संकल्पित हो काम।
फिर सँवरेगी ज़िन्दगी, जग में होगा नाम।।
जग में होगा नाम, सभी यशगान करेंगे।
नकल करेंगे लोग, चरण के चिह्न गहेंगे।।
जो करते सत्कर्म, कभी क्या जग में मरते?
इसीलिए प्रारम्भ, सोच कर ही हम करते।।
 
भारत माता रो रही, होकर खूब उदास।
सुषमा जी के निधन से, मद्धिम आज उजास।।
मद्धिम आज उजास, सभी हैं दुख में रोते।
शोकाकुल सब लोग, नहीं वे किञ्चित् सोते।।
गयीं जगत को छोड़, देश से रखकर नाता।
इसीलिए तो आज, टुखी है भारत माता।।
 
देकर वह है क्यों गयी, सबको दुसह वियोग।
सुषमा जी के नाम को, याद करेंगे लोग।।
याद करेंगे लोग, देश क्या भूल सकेगा।
महिला थी वह लौह, विश्व भी सतत कहेगा।।
गयी हमें अब छोड़, कीर्ति अद्भुत वह लेकर।
छोड़ गयी वह छाप, बहुत कुछ हमको देकर।।
 
ढलता ही है साँझ में, थककर नित्य दिनेश।
बालसूर्य देता हमें, जीने का संदेश।।
जीने का संदेश, सृष्टि की रीति यही है।
सुख-दुख सम दिनरात, कथन यह पूर्ण सही है।।
पतन संग उत्थान, समझ लें प्रतिपल चलता।
उगता लेकर जोश, नित्य जो सूरज ढलता।।

आज़ादी के बाद क्या, रहते सब खुशहाल?
नित्य सड़क पर घूमते, रहते जब कंगाल?
रहते जब कंगाल, करोड़ों भूखे मरते।
कुछ लोगों के अन्न, पड़े घर में हैं सड़ते।।
होता है अफ़सोस, देख उनकी बर्बादी।
हैं विपन्न जब लोग, कहो फिर क्या आज़ादी?
 
जिनके सिर पर हो सदा, प्रभु भोले का हाथ।
वे जपते हैं सर्वदा, जय जय भोलेनाथ।।
जय जय भोलेनाथ, कृपा जिसपर वे कर दें।
पा लेता पुरुषार्थ, सुखों से झोली भर दें।।
हैं देवों के देव, नाम लेते सब उनके।
सावन शिव का मास, भक्त गुण गाते जिनके।।
 
सबसे प्यारा विश्व में, अपना हिन्दुस्तान।
जय जननी माँ भारती, हो तेरा उत्थान।।
हो तेरा उत्थान, प्रगति की पा लो चोटी।
वे भी होंगे भक्त, रखे जो नीयत खोटी।।
सबका हो कल्याण, यही विनती है रव से।
घटे नहीं एकत्व, करूँ मैं आग्रह सबसे।