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ख़त्म अपनी हयात है फिर भी / राज़िक़ अंसारी

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ख़त्म अपनी हयात है फिर भी
ख़्वाहिशे कायनात है फिर भी

मैं अकेला सफ़र में हूँ लेकिन
हाथ में तेरा हाथ है फिर भी

तू नहीं मेरे आस पास कहीं
रूबरु तेरी ज़ात है फिर भी

थक चुके काट काट के लेकिन
कितनी लम्बी ये रात है फिर भी

इक नई ज़िन्दगी को हम जी लें
चन्द लम्हों का साथ है फिर भी