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ख़ामोश हो क्यों दादे-ज़फ़ा क्यूँ नहीं देते / फ़राज़

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ख़ामोश हो क्यों दाद-ए-ज़फ़ा<ref>अन्याय की प्रशंसा </ref> क्यूँ नहीं देते
बिस्मिल<ref>घायल </ref> हो तो क़ातिल को दुआ क्यूँ नहीं देते

वहशत<ref>भय, त्रास </ref> का सबब रोज़न-ए-ज़िन्दाँ<ref>जेल का छिद्र </ref> तो नहीं है
मेहर-ओ-महो-ओ-अंजुम<ref>सूर्य, चाँद और तारे </ref> को बुझा क्यूँ नहीं देते

इक ये भी तो अन्दाज़-ए-इलाज-ए-ग़म-ए-जाँ<ref>जीवन के दुखों का इलाज </ref> है
ऐ चारागरो!<ref>वैद्यो,चिकित्सको </ref> दर्द बढ़ा क्यूँ नहीं देते

मुंसिफ़<ref>न्यायाधीश </ref> हो अगर तुम तो कब इन्साफ़ करोगे
मुजरिम<ref>अपराधी </ref> हैं अगर हम तो सज़ा क्यूँ नहीं देते

रहज़न<ref>लुटेरा </ref> हो तो हाज़िर है मता-ए-दिल-ओ-जाँ<ref>दिल और जान की पूँजी </ref> भी
रहबर हो तो मन्ज़िल का पता क्यूँ नहीं देते

क्या बीत गई अब के "फ़राज़" अहल-ए-चमन<ref>चमन वाले </ref> पर
यारान-ए-क़फ़स<ref>जेल के साथी </ref> मुझको सदा<ref> आवाज़</ref> क्यूँ नहीं देते

शब्दार्थ
<references/>