ख़ुदा इस शहर को ये क्या हो चला है / मधुभूषण शर्मा 'मधुर'
ख़ुदा इस शहर को ये क्या हो चला है ,
कि हर मोड़ पर इक ख़ुदा हो चला है !
मकां देखिए कितने पास आ रहे हैं ,
दिलों में मगर फासला हो चला है !
ये हालात बिगडेंगे क्या इस से ज़्यादा ,
कि अच्छा भी होना बुरा हो चला है !
सभी को यहां इतने शिकवे गिले हैं ,
कि हर सुर यहां बेसुरा हो चला है !
यहां मापता कौन है अपने क़द को ,
कि हर शख़्स ख़ुद में बड़ा हो चला है !
अब आसान किश्तों पे ईमां बिकेगा ,
कि बाज़ार इतना खुला हो चला है !
सफ़ीने का अब डूबना लाज़िमी है ,
कि हर दस्त दस्ते-दुआ हो चला है !