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ख़ून से जब जला दिया एक दिया बुझा हुआ / पीरज़ादा क़ासीम

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ख़ून से जब जला दिया एक दिया बुझा हुआ
फिर मुझे दे दिया गया एक दिया बुझा हुआ

महफ़िल-ए-रंग-ओ-नूर की फिर मुझे याद आ गई
फिर मुझे याद आ गया एक दिया बुझा हुआ

मुझ को निशात से फ़ुजूँ रस्म-ए-वफ़ा अज़ीज़ है
मेरा रफी़क़-ए-शब रहा एक दिया बुझा हुआ

दर्द की काइनात में मुझ से भी रौशनी रही
वैसे मेरी बिसात क्या एक दिया बुझा हुआ

सब मेरी रौशनी-ए-जाँ हर्फ़-ए-सुख़न में ढल गई
और मैं जैसे रह गया एक दिया बुझा हुआ