भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़ू़ब जनता को नचाया जा रहा / डी. एम. मिश्र

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:25, 30 दिसम्बर 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ख़ू़ब जनता को नचाया जा रहा
कमल रेतों में खिलाया जा रहा

वो चुनावों में यही हर बार कहता
राम का मंदिर बनाया जा रहा

छेड़कर इतिहास के पन्नों को फिर
हमको आपस में लड़ाया जा रहा

अब कोई कैसे यक़ीं आखि़र करे
झूठ को भी सच बताया जा रहा

साँस लेने पर भी जीएसटी लगे
वो मसैादा भी बनाया जा रहा

आदमी को ही जो कर दें बेदख़ल
उन मशीनों को लगाया जा रहा

क्या ज़माना आ गया है दोस्तो
सूर्य को दर्पण दिखाया जा रहा

डर के मारे लोग क्या-क्या कर रहे
क़ातिलों को घर बुलाया जा रहा

कल तो दिखलाया गया था सब्ज़बाग़
और अब मक़तल में लाया जा रहा