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खुला पुस्तकालय जंगल में / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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बालवाटिका पढ़ पढ़कर, कालू बंदर हो गये विद्वान|
इसी बात का हाथीजी ने, शेर चचा का खींचा ध्यान|
देखो तो यह कालू बंदर, पढ़ लिखकर हो गया महान|
हम तो मात्र हिलाते रह गये, अपने पूँछ गला और कान|
बाल वटिका बुलवाने का, खुलकर किया गया एलान|
शाल ओढ़ाकर बंदरजी का, किया गोष्ठी में सम्मान|
पढ़ने लिखने से ही आता, है दुनियादारी का ग्यान|
खुला पुस्तकालय जंगल में, पढ़ते हैं सब चतुर सुजान|