भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खूब गावोॅ गीत / मतिकांत पाठक 'मधुव्रत'

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:10, 22 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मतिकांत पाठक 'मधुव्रत' |अनुवादक= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खूब गावोॅ गीत/‘वन्दे मातरम् ।’
निपोरलें दाँत, जोड़लें हाथ/होय केॅ बेशरम ।
आजो धरती तेॅ/वहेॅ सुजलां-सुफलां
आरो मलयज शीतलां छै,
किंतु हे हो मीत,/तोरोॅ मोॅन
अन्हारोॅ सें भुलैलोॅ छौं ।
बन्द बोरिया में यहाँ/गेहूं गेलै पाताल ।
चैॅर, कोयलोॅ, बूंट/की-की गिनैहियौं ?
कहाँ केकरौॅ हाल ?
छूओॅ जेकरा/वहेॅ बेहाल ।
बात होय छौं बहुत उच्चोॅ
साथ तोरोॅ मोॅन कहाँ छौं ?
अहो अधिनायक/की तोरोॅ साथ
जन-गण-मन छौं ?
जहाँ तों छोॅ, वहाँ
धरती में शहीदोॅ रोॅ लहू नया छै ।
कभी तोरा याद आवै छौं ?
याद रोॅ की काम ?
चलौं वश तेॅ/गिली जा देश रोॅ माँटी ।
की भोरे-भोर/शामे-शाम
ताकै छोॅ मुकुर-मुकुर ?
हाथ सें ठोकोॅ करम ।
खूब गावोॅ गीत-
‘वन्दे मातरम् ।’