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खूब हँसती हैं शिलाएँ / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र

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हाँ, वही हैं
दूधिया दिन
  बिल्लौरी हवाएँ
 
पंख परियों के
उजाले बुन रहे हैं
खुशबुओं के गीत
सूरज सुन रहे हैं
 
नदी के जल में
हजारों जल रहीं जैसे शमाएँ
 
देखिये तो
हंस-जोड़े उड़ रहे हैं
धूप ले
अमराइयों में
मुड़ रहे हैं
 
देख लहरों की शरारत
खूब हँसती हैं शिलाएँ