भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खेल मे भारत-रत्न पुरस्कार की घोषणा पर... / समीर बरन नन्दी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:03, 1 जनवरी 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=समीर बरन नन्दी |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लाल-काली जर्सी पहने खिलाड़ी उतरे हें मैदान में
हज़ारों हाथ हिल रहे हें हज़ार तरह के रुमाल उछल रहे हें
पूरा स्टेडियम पपीते की आधी फाँक की तरह रंगीन था

खेलो-खेलो...पेले की तरह खेलो
अनाथ बच्चों जीत के लिए हज़ारहवें गोल से आगे ।
सही समय पर.. मधुमखी के डंक.. अली की मार की तरह.. मारो ।
दौड़ो-दौड़ो आबेबा विकला की तरह दौड़ो—
नंगे पाँव मैराथन जीत की तरह
खेलो.. बिना फाऊल किए ध्यानचंद की तरह
सचिन की ईमान की तरह ।

हम सबको जेसी ओवेंस की तरह ।
हमेशा हिटलर के मैदान में.. हिटलर की आँख मे खटकना है...।