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खेलत गावत फाग / सरस्वती माथुर

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फागुनी धूप में
होली के रंग
भीगे आँगन में
बज रहे हैं चंग
होली आ गई रे
बज रहे हैं चंग
गाँव ताल चौपाल
भू से नभ तक
उड़ रही गुलाल
होली आ गई रे
मकरंद-सी चारों ओर
फाग की पतंग से
बँधी अबीर की डोर
होली आ गई रे
खेलत गावत फाग
फागुन के बासंती राग
बज रहे हैं मस्ती के मृदंग
मस्ती छा गई रे
होली आ गई रे