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गप्पूमल थे एक गपोड़ी / प्रकाश मनु

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गप्पूमल थे एक गपोड़ी,
खाईं झटपट तीन कचौड़ी।
एक कचौड़ी मीठी-मीठी,
एक कचौड़ी बिलकुल फीकी।
लेकिन एक कचौड़ी तीखी,
थी भैया, वह इतनी तीखी।
भागे, भागे, गप्पू भागे,
भागे गप्पू सबसे आगे।

चले मगर कुछ राह न दीखी,
रस्ते में मोटर की पीं-पीं।
अटक-मटककर वे चलते थे,
कंधे झटक-झटक चलते थे।
तभी मटकता आया हाथी,
गप्पूमल पर लात चला दी।
गप्पू कूदे एक खाई में,
चंदा दिख जी परछाईं में।
बस चंदा तक दौड़ लगा दी,
दुनिया अपनी वहीं बसा ली।

अब चंदा पर गप्पूमल हैं,
दादी संग बुनते मलमल हैं।
कभी-कभी जब अकुलाते हैं,
उछल जमीं पर आ जाते हैं।
गप्पें खूब सुना जाते हैं,
चंद्रविहारी कहलाते हैं!
और चाँद पर बस जाने का,
न्योता हमको दे जाते हैं।
गप्पूमल ये अजब गपोड़ी,
अब ना खाते कभी कचौड़ी!