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गमों से बोझिल ये दिल है, मुस्कुराएँ तो कैसे? / पल्लवी मिश्रा

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गमों से बोझिल ये दिल है, मुस्कुराएँ तो कैसे?
बुला रहे हो तुम मगर करीब आएँ तो कैसे?

जो जख़्म दिये हैं तुमने काबिल-ए-मरहम नहीं,
कलेजा चीर नहीं सकते, दिखलाएँ तो कैसे?

बेरुखी की ठोकर से दिल का शीशा चूर हुआ,
इसमें अब चेहरा तेरा, देख पाएँ तो कैसे?

अपनों से खाई चोट को है भूलना आसां नहीं,
कहते तो हो भुलाने को, भूल जाएँ तो कैसे?

आँसुओं के सागर से, कितने आँसू पी डाले,
और कितनी बूँदें बिखर गईं, उन्हें गिनाएँ तो कैसे?

प्रेम का कच्चा धागा आखिर इक दिन टूट गया,
तुम्हीं कही बिन गाँठों के जोड़ पाएँ तो कैसे?