भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गर जा रहे हैं आप तो कुछ कहके जाइये / डी. एम. मिश्र

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:04, 23 अगस्त 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गर जा रहे हैं आप तो कुछ कहके जाइये
मेरे भी दिल का दर्द मगर सुनके जाइये।

आसूँ बहुत नये हैं अभी तर हवा चले
ऐसी फजा में आप जरा थमके जाइये।

वादे न हों तो ना सही, यादें तो हों सजी
कुछ चाहतें ज़रूर आप रखके जाइये।

मैं खुश हूँ मेरी आँख पे न जाइये जनाब
बस, एक इल्तिजा़ है मगर हँसके जाइये।