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गर हो सके तो टूटे हुए दिल को जोड़ दे / अनुज ‘अब्र’
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गर हो सके तो टूटे हुए दिल को जोड़ दे
वरना तू मेरे हाल पे ही मुझको छोड़ दे
मुझको क़फ़स मे क़ैद न कर ऐ मेरे अज़ीज़
या तो रिहाई बख़्श या गर्दन मरोड़ दे
सच को ही सच कहूँगा मुझे कुछ गरज नहीं
मै आइना हूँ तेरा मुझे रख या तोड़ दे
सदियों से दुनिया ताक में बैठी है एकदिन
मौका मिले और इश्क़ की वो आँख फोड़ दे
यूँ अश्क़ जल रहे हैं शबे हिज्र में मेरे
जैसे कि कोई आँख में नींबू निचोड़ दे
पूरी ग़ज़ल में एक तो ऐसा भी शेर हो
तेरा दिलोदिमाग अनुज जो झिझोड़ दे