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गरीबा / चरोटा पांत / पृष्ठ - 2 / नूतन प्रसाद शर्मा

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चुम्मन किहिस – “कहत हस ठंउका, इहां दिखत नइ एको जीव
हमर पाप ला कोन देखिहय, हम अब झपकुन बुता सिरोन।”
खोभा अउ चोवा मन निष्ठुर, करिन धरापसरा ए काम –
नानुक शिशु ला उंहे छोड़ दिन, अपने मन लहुटिन चुपचाप।
जे बालक पलका पर सोतिस, जठना बिगर भूमि पर सोय
देखे बर कतको झन आतिन, पर अब लगत अपन दुख रोय।
मोहरी दमऊ अउ दफड़ा बजतिस, मगर इहां सुनसान सतात
महतारी के दूध ला पीतिस, इहां खुद के आंसू मुंह जात।
एकरे रोना सुन के आइस, सुद्धू नामक एक किसान
बालक उठा के मुंह ला चूमत, कथय – “इहिच बालक भगवान।
नारफूल के साथ फेंक दिन, दया मरिन नइ निर्दयी जीव
दुनिया भटही तइसे लगथय, छल धोखा मानवता बीच।”
सुद्धू अपन हाथ ला देखिस, लाल रकत कतिंहा ले अैस!
शिशु के गला कटे जानिस तंह, होय सुकुड़दुम गप खा गीस।
तुरुत फूल ला लान लीस घर, तंहने बुड़गे फिकर के ताल-
होय स्वस्थ बालक के तबियत, मंय अब रखिहंव एला पाल।”
अंकालू ला बला के लानिस, कहिथय – “एकर कर उपचार
फूल असन शिशु के जीवन ला, दवई जोंग के तिंहिच उबार।”
अंकालू हा शिशु ला देखिस, प्यार करत हे मर के सोग
कहिथय – “शिशु हा मन ला मोहत, प्रकृति के अनुपम उपहार।
नानुक के मुंह नव चंदा अस, लेबना अस केंवरी हे देह
लसलस गरु गोलेन्दा भांटा, बालक पर आवत हे स्नेह।”
अंकालू उपचार करत हे – धोइस घाव ला कुनकुन नीर
घाव मिटाये दवई ला जोंगिस, कर लिस पूर्ण मदद के काम।
अंकालू हा लहुट गीस घर, सुद्धू किंजरत नानुक पाय
नानुक हा कुछ क्षण सोवय तंह, दरद के कारण झप जग जाय।
सुद्धू फिकर मं लेत नींद नइ – टहल करत जगवारी।
रुई फहा मं दूध पियावत थम थम देखत नारी।
अपन काम मं सुरुज उपस्थित, सब अतराप बगर गे घाम
सुद्धू शिशु के देखभाल मं, चेत जात नइ दूसर कोत।
सोनू हा सुद्धू तिर पहुंचिस, जउन गांव के प्रमुख किसान
सुन्तापुर ला कांख मं राखत, ओकर दब मानत ग्रामीण-
जइसे धुंका बंड़ोरा आथय, तब उड़ जात धूल कण पान
सुद्धू हा सोनू ला देखिस, धक ले होवत ओकर प्राण।
सोनू बोलिस -”खरथरिहा अस, मुंह झुलझुल त्यागत हस खाट
खेतखार के बिरता जांचत, मेड़ पार के करत सुधार।
पर आश्चर्य मं डारत मोला – तंय घर मं रबके हस आज
कुरिया घुसर काम का जोंगत, मोर पास तंय हा कहि साफ?”
सुद्धू अपन बचाव करे बर, सोनसाय तक खुश हो जाय
स्वागत करत देत हे आदर, शिशु ला देखा पाय उकसात।
सुद्धू हा बालक ला देवत, पर सोनू छिटकिस कुछ दूर
कथय – “टुरा ला कहां पाय तंय, काबर मुड़ पर लाय बवाल!
कहुंचो ले तंय चुरा लाय हस, तब घुसरे हस भितर मकान
अगर बेदाग बचे बर सोचत, सच घटना ला फुरिया साफ?”
सुद्धू मरिस सोग बालक पर, बन के रक्षक उठा के लैस
पर बलाय बिन लांछन आवत, सुद्धू कलबलात हे खूब –
“मंय निर्दोष – गिरे नइ नीयत, काबर व्यर्थ कलंक लगात!
बालक परे रिहिस बिन पालक, तेला मंय हा धर के लाय।
मोर सहायक एको झन नइ, ठुड़गा पेड़ असन मंय एक
बालक पालत मन बोधे कहि, अब मंय सकिहंव बिपत खदेड़।”
सुद्धू के सुन सोनू बिफड़िस- “सब ले दयावान तंय एक
काकर अंस कहां तंय जानत, मन अनुसार करत हस टेक।
गांव के रीति नीति ला जानत – अगर एक पर दुख हा आत
ओला जमों गांव भर भोगत, भोगत कहां कष्ट बस एक!
लाय बवाल सबो झन बर तंय, ओकर ले तंय बच निर्दोष
अगर टुरा ला पास मं रखबे, तब फिर डांड़ के रुपिया लान।”
एेंच पैंच नइ जानत सुद्धू, बला ले रक्षा के हे चाह
रखे अपन तिर नगदी रुपिया, सोनसाय के असलग दीस।
सोनू हा रुपिया धर रेंगिस, तंह ग्रामीण घलो आ गीन
बालक के संबंध मं पूछत, सुद्धू के चिथ खावत मांस।
घंसिया बोलिस -”सुन सुद्धू तंय, बालक ला लाने हस व्यर्थ
तंय सोचत हस – बने करे हंव, लेकिन काम कुजानिक खूब।
लइका जहां युवक हो जाहय, मात्र देखिहय खुद के स्वार्थ
तोर मदद ले भगिहय दुरिहा, कभू करय नइ सेवा तोर।
मानव जीवन हा निश्चित नइ, मृत्यु पहुंच के हरही प्राण
तेकर ले तंय रहि एके झन, ए बालक ला कभु झन पोंस।”
उही ठउर मं केड़ू हाजिर, ओहर हा करथय कुछ क्रोध
कहिथय -”मोला उमंझ आत नइ-जग हा काबर निष्ठुर खूब!
ए शिशु हा मानव के वंशज, एहर नइ कुछ घृणित पदार्थ
जेमां सब झन घृणा करत हव, फेंके बर सब देत सलाह!”