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गरीबा / तिली पांत / पृष्ठ - 24 / नूतन प्रसाद शर्मा

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रथिया काटिन कर जगवारी, परब देवारी लगगे आज
हूम दीन गउरा गउरी मं, दुन्नों ला मुड़ मं बोहि लीन।
देव ला ठंढा करना हे अब, जनसमूह तरिया मं गीस
उंहे देव ला ठंढा कर दिन, तंहने करत सफइ के काम।
मनसे मन हा डुबक नहावत, हेरत हवंय देह के मैल
गन्दा कपड़ा मन ला धोवत, साबुन तिली चिरचिरा राख।
मनसे अपन ठिंहा मं लहुटिन, अड़बड़ काम के आय तिहार
गरूवा मन नइ लगत थिरबहा, दउड़त गली बोरक्की मार।
रंधनी के तिरिया मन सोचत- समझ आत नइ रांधन काय
पास परोसी ला पूछत हें-”काय साग रांधत हव आज?
कोंहड़ा कोचई जिमीकांदा हे, तेमां अमसुर मही डराय
एमन आज सुहाथय नंगत, तभे परब हा होवत पूर्ण।”
कोंहड़ा कोचई जिमीकांदा ला, कहुंचो ले कर लीन प्रबंध
ककरो मन हा काबर टूटय, सब घर रांध करिन तैयार।
अउ पकाय ताकत के पुरती- बरा सोंहारी भजिया खीर
अपन पेट भर जिनिस उड़ाइन, संहरावत खुद के तकदीर।
मांईलोगन लिखपोहना धर, ननचुनिया के कोरत बाल
पर ओमन ला कुछ नइ भावत, भगना चहत गुंडी तन जल्द।
गायगरू के पूजा होवत, खिचरी खवा परत हें पांव
सोहई ला बांधत बरदीहा हा, लेवत हें ठाकुर के नाम।
कृषक के कोठी ऊपर ओमन, गोबर लोंदी मारिन खींच
अन धन हा दिन दूना बाढ़य- मन ला खोल देत आशीष।
चार बजिस तंहने मनखे मन, बइगा चंवरा तिर सकलैन
चेतलग मन पोटास मन्सिर भर, गचकुण्डी ला धांय बजैन।
एक बछर मं एक देवारी, सबके मन मं हवय उमंग
पुरसारथ भर सम्हरें सबझन, एको झन नइ जड़ग बड़ंग।
नान्हे लइका कंधा पर चढ़, जगर बगर देखत सबकोत
बजत फटाका मन हा भड़भड़, लइका झझक के रोवत खूब।
नवयुवती मन सम्हर खड़े हें, कान मं खोंचे दवनापान
आंख मं काजर गोड़ मं माहुर, मुंह मं दाबे बंगला पान।
हे घुमियार देवतिर तिरिया, इहां आय घर तारा ठेंस
अपन सखी संग बात चलावत- आज तो हंस के कर ले गोठ।
उनकर ले थोरिक दुरिहा मं, डोकरा मन कनिहा धर ठाड़
बेलबेलहा मन कंहु बिजरावत, कुबरी लउठी सर्र घुमात।
ओतकी मं राउत मन आइन, बाजा बजत नचत हें झूम
बइगा चंवरा परकम्मा कर, कांछा ढोंलग देत हें हूम।
आंखी काजर मुंह मं बंसरी, तेंदू खैर के लउठी हाथ
गोड़ पयजना संग मं घुंघरू, कनिहा भर कउड़ी के हार।
मोर पंख के गांथे खोपड़ी, राउत मन के देखव शान
साजू छाती बंहा मं बंहिका, रखे हें गघरा ऊपर तान।
एक जगा मं ठाड़बाय नइ जइसे कतला रोहा।
लउठी धर के पिचरिंग कूदत कांख के पारत दोहा।
कालीदह मं कुदे कन्हैया तोड़े पताल के ताला।
उचक गेंद पताल मं धंसगे सोचय पृथ्वी वाला।
पत्थर चुन चुन महल बनाया लोग कहे घर मेरा।
ना घर तेरा ना घर मेरा चिड़िया करे बसेरा।
अंचरा चिरचिर फेंके सीता मांई
झोंके बीर जटायू
तीन लोक में है कोई जोइधा रख रखे बिलमाई।
राम नाम के लूट है लूट सकै तो लूट।
अंतकाल पछतायेगा प्राण जायेगा जब छूट।
बृन्दाबन के कुन्जगलिन मं लम्बा पेड़ खजूर।
चढ़ने वाला चढ़गया संगी, उतरे तो ब्रज दूर।
सब के लउड़ी रींगी चींगी मोर लउड़ी कुसुवा।
पाँच कउड़ी मं डउकी लानेंव उहू ला लेगे मुसुवा।
अड़बड़ दिन के पावन संगी मुख दर्शन को आय हो।
अइसन देवारी नाचो संगी जीव रहे के जाय हो।
राउत नचत बढ़त आगू तन, मनखे रेंगत उनकर साथ
भांवर मं दुलहिन हा चलथय, चांटी चाल चलत हें पांव।
नाच डहर सब के सुरता हे, सतिया छुटत देख अब लेंव
अगर एक झन अगुवा जावत, पर हा बाढ़त धक्का मार।
कोलकी गली जउन तिर अभरत, तिरिया मनबर अड़बड़क्लेश
लेकिन कुराससुर ला घंसरत- बाद मं दे लेहव उपदेश।
चिरई हा वापिस खोंधरा आथय, सुरूज जात घर करके काम
कमल फूल हा डोंहड़ू बनथय, महानगर के रद्दा जाम।
गरूवा चारा चर के आथंय, जब होथय दिन रात मिलान
उही बखत देहाती पहुंचिन, राउत नाच देखत दइहान।
गोबर के गोरधन जंगल हे, संहड़ादेव के बिल्कुल पास
उत्ती बुड़ती हे गोरस जल, जेहर आरूग यने के नीक।
धान के बाली रूमझुम होवत, सिलियारी मेमरी मन साथ
जमों खोंचाय गाय गोबर मं, ओमन अति सुन्दर रूपसात।
एक बरन गइया के बछरू, जेकर चिलक लेत मन मोह
पूजा करा सोहई बंधवा लिस, खिचरी झड़क नचावत गोड़।
गोरधन डोंगरी ला उझारदिस, बछरू हा गदफद कर कूद
बाग बगीचा रंउदा चरपट, भुंइया घुसगे पानी दूध।
गरूवा मन सकला ठाढ़े हें, ओमन ला लानिन ए पास
ओमन गोबरधन ला खूंदिन, मनसे मन हा खुशी मनात।
सब ग्रामीण दउड़ के आइन, गोबरधन ला धरलिन हाथ
एक दूसरा माथ मं टीकिन, भूल शत्रुता करलिन भेंट।
आपुस मं गोबरधन बदथंय छोटे परिस बड़े के पांव
एक दूसरा हाथ ला पकड़िन, सबझन लहुदिन खुद के छांव।
होईन अभी दूध पानी अस बिसरिन मारा मारी।
शांति के बंसरी बज ही जग मं तब पबरित देवारी।

तिली पांत समाप्त