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गरीबा / तिली पांत / पृष्ठ - 3 / नूतन प्रसाद शर्मा

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भाना ला समझे कहि बोलिस -”तोर दिमाग हवय कमजोर
तब तंय गलत बात बोलत हस, गलत तर्क के मारत जोर।
मंगलिन हा मिल के मालकिन ए, तंय ओकर हिनहर मजदूर
ओहर धनी – गरीबिन अस तंय, अलग अलग दूनों के वर्ग।
ओहर जियत खाय पहिरे बर, तंय खावत हस जान बचाय
ओकर जीवन पद्धति उंचहा, निम्न हीन हे जीवन तोर।
वर्ग भेद बढ़थय रब्बड़ अस, तंहने शोषक करथय लूट
एक जीव मछरी मछरी मं, पर छोटे ला बड़े हा खात”।
भाना ला टैड़क समझा के उहां ले रेगिस लौहा।
छेरकू मंत्री राह मं दिखथय जउन हा अड़बड़ कैंया।
ओकर बोल मीठ मंदरस अस, मुंह हा फूल असन मुसकात
मगर पेट मं कपट ला पालत, सोन के गगरी मं विष तीक्ष्ण।
मंगलिन पास पहुंच गिस छेरकू, ओकर हाल करे बर ज्ञात
एक के पास अकुत धन पूंजी, दूसर धरे हवय पद ऊंच।
जब चुनाव के बखत हा अंड़थय, मंगलिन मदद मं रुपिया देत
शाशन मंगलिन ला अरझाथय, छेरकू खतम करत हर कष्ट।
छेरकू ला मंगलिन हा देखिस, स्वागत करत हर्ष के साथ
कहिथय- “तंय स्थिति जानत हस – मिल मं चलत हवय हड़ताल।
मंय नुकसान सहे हंव नंगत, अउ घाटा होवत अनलेख
कते राह धर आगू जावंव, ताकि लाभ कमती झन होय?”
छेरकू हा गंभीर बन जाथय, फेर निकालिस सरलग बोल-
“तंय हा फोकट के झन घबड़ा, कोन जरा सकिहय उद तोर!
कंगला श्रमिक के कतका ताकत, घुटना टेक दिही दिन एक
जउन खवाबे ओमन खाहंय, एकोकन नइ करंय विरोध।
मिल मं तारा लगे बड़े अस, चलन देव सरलग हड़ताल
गिर झन ककरो गोड़ निहू बन, श्रमिक घूम रोवंय बेहाल।”
छेरकू, मंगलिन ला फुरनावत, पर एकर अंदर कुछ राज –
ऊपर नफा दिखत मंगलिन के, पर खुद छेरकू पावत लाभ।
एहर श्रमिक के तिर मं जाहय, दिही सांत्वना मधुर अवाज
जमों श्रमिक एकर पतियाहंय, छेरकू के बढ़ जाहय मान।
सुन्तापुर के जमों श्रमिक मन, काम छोड़ कर दिन हड़ताल
छेरकू हा धनवा तिर चल दिस, खतम करैस चलत हड़ताल।
लेकिन इहां उलट के रेंगत, चाहत चलय अउर हड़ताल
यने जेन स्थिति आवश्यक, करथय काम उहिच अनुसार।
दूसर हा नुकसान ला झेलत, पर छेरकू ला नइ परवाह
अपन लाभ पद यश रक्षा बर, ओहर चलत बहुत ठक राह।
छेरकू हा मंगलिन ला छोड़िस, विश्रामे गृह मं चल दीस
पत्रकार अधिकारी विधायक, शासन तंत्र हा स्वागत देत।
उहां आय हे घना विधायक, खुज्जी क्षेत्र के प्रतिनिधि आय
ओला घेर रखे कई मनखे, चीथत मांस अनर्गल बोल।
डेंवा हा रट किहिस घना ला -”तोला हम उठाय हन ऊंच
विजय देवाय चुनाव समर मं, कतको झन ले बन के शत्रु।
लेकिन तंय हा गुनहगरा हस, टरिया देवत हमर गोहार
जनता ला धोखा देवत हस, पूरा करत स्वयं के स्वार्थ।”
अचरज मं भर घना हा देखत छेंक के राखे गुस्सा।
अगर अपन हा बायबिरिंग तब खुद पर आहय बद्दी।
घना हा बोलिस पुचकारत अस -”कहना काय साफ अस बोल
छुपे रहस्य के परदा टरिया, दुख ला हरिहंव जान बिखेद।”
डेंवा के बकचण्डी बढ़ गिस -”तुन नेता के इहिच सुभाव
जनता कतको आंसू ढारत, पर पथरा अस हृदय तुम्हार।
हमर गांव मं जल के कमती, खेत सिंचई बर नहर अभाव
लघु उद्योग तक के टोटकोर्राे, संकट बीच जियत हे गांव।
तंय आश्वासन देस बहुत ठक, लेकिन अब तक काम अपूर्ण
यद्यपि सब सुविधा नइ मिलिहय, पर तंय करा सफल कुछ काम।”
किहिस घना -”यद्यपि तंय खुश हस – आज विधायक ला डपटेंव
मगर तोर भ्रम भूल भयंकर, गारी हा कराय नइ काम।
हां, अब मोला याद आत हे – बांध बनाय आश्वासन देंव
छेरकू कर मंय रखेंव समस्या, लेकिन ओकर सुध नइ लेंव।
चलना अभि मंत्री तिर जाबो, ओकर तिर ढिलबोन सवाल
तंय हा जेन करत हस शंका, ओकर तक मिल जही जवाब”
छेरकू तिर जा घना हा बोलिस -”जानत हवस मोर तंय मांग
बांध बनाय केहेंव मंय तोला, कतका सरक सकिस हे काम!
मोर क्षेत्र के सब मनखे मन, करत केलवली दुख ला रोत
ओमन ला उत्तर का देवंव, मोर प्रश्न के देव जुवाप?”
छेरकू रखे जुवान अपन तिर, तइसे किसम निकालिस जल्द –
“घना, जउन तंय बात ला पूछत, हवय सुरक्षित ओकर ज्वाप।
मंय राजधानी गेंव जउन दिन, देखे हवंव तोर भर काम –
बांध बंधे बर स्वीकृति होथय, देके जोम करे हंव मांग।
कार्यालय मं भिजा डरे हंव, ओकर होत जउन आदेश
ज।सं।वि। ले तंय स्वयं पता कर, मोर बात मं कतका सत्य!”
बाबूलाल उंहे मेंड़रावत, अधिकृत अधिकारी उहि आय
ओकर पास घना हा पूछिस, ताकि बात होवय स्पष्ट।
बाबूलाल बेधड़क बोलिस -”मंत्री हा अभि कहि दिस जेन
ओकर बात सत्य सूरज अस, मंय तोला देवत विश्वास।”
अधिकारी के उत्तर सुनथय, घना अपन मन होत प्रसन्न –
मुड़ के फिकर बोझ हा उतरिस, हाही सरापा ले बच गेंव।
बांध हा बन – जल दिही खेत मं, उहां उपजिहय ठोस अनाज
कृषक के कंगलइ भूख मिटाहय, मोर गीत गाहंय धर राग।”
छेरकू जमों कार्यक्रम छेंकिस, पत्रकार ला पास बलैस
उंकर प्रश्न के उत्तर ला दिस, एकर बाद सभा के अंत।