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गरीबा / धनहा पांत / पृष्ठ - 16 / नूतन प्रसाद शर्मा

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मोर टुरा ला दुश्मन समझत, इहां ले खेद देत हव तूल
दूसर ठंव तक इसने लड़िहय, करिहय सदा भूल पर भूल।
मुड़ी उचा के झन चल पावय, तइसे नसना टोरो खूब
सरलग जोंतई निंदई ले होथय, बन बनखर के बिन्द्राबिनास।”
सुध्दू के करलई केंघरई हा, मनखे के आत्मा पिघलैस
करत नियाव पंच मन जुरमिल, बाद झड़ी हा फोर बतैस –
“देवत क्षमा गरीबा ला हम, गांव छोड़ावत नइ मर सोग
लेकिन एकर बल्दा मं तंय, दण्ड लान जुर्माना भोग।
बइठक उसलय ओकर पहिली, लान नोट गिन सात हजार
यदि असमर्थ – अनाज ला भर दे, फोकट झन कर समय ला ख्वार।”
सुद्धू कथय -“हाल अभि खस्ता, टिकली तक नइ विष ला खाय
अविश्वास तब जांच लेव घर, मंय खोलत हंव खुद के पोल।”
बन्जू कथय -“बचे बर चाहत, हेर उपाय स्वयं तंय सोच
जइसे नाविक हा जहाज ला, बीच सिंधु ले लात निकाल।”
सुद्धू कथय -” फसल नव आहय, तब मंय ऋण ला देहंव छूट
कागज लिख दसकत मंय देवत, मगर हमर पत ला रख देव।”
सात हजार ऋण के कागज मं, टिकिट रसीद घलो चटकैस
ओमां सुद्धू हस्ताक्षर दिस, काबर के नइ दुसर उपाय।
बद्दी पावत हवय गरीबा, जबरन भरिस दण्ड के दाम
एकर बाद बइसका उसलिस, मनखे मन गिन अपन मकान।
बेटा बाप अपन घर मं गिन, तंह सुद्धू हा रखिस सवाल –
“तंय खुद ला निर्दोष बतावत, दूसर पर डारत सब दोष।
सोनू अउ धनवा दूनों मिल, तोर विरूध्द रचिन षड़यंत्र
लेकिन अइसन काबर होवत, ओमन ला का होवत लाभ?”
कथय गरीबा – “मोर बात सुन, कभू कभू दिखथय ए बात –
टक टक लाभ दिखय नइ सम्मुख, पर परिणाम मिलत हे बाद।
सोनू हा अभि लाभ पाय नइ, मगर प्रतिष्ठा हा बढ़ गीस
यद्यपि गलत काम हे ओकर, लेकिन चाल सफल होगीस।
सत्य राह पर हम रेंगे हन, तब ले होय व्यर्थ बदनाम
हम हा घाटा खूब खाय हन, तब ले झुके विवश हो गेन।”
“एक लुटुवा मंय भूत बरोबर, पर कुछ बाद उइस तकदीर –
तोला उठा लाय मंय जइसे – नीरु हा गुनवान कबीर।
तोला कभुच छोड़ नइ सकिहंव, आखिर समय के लउठी आस
तंय संहराय के रद्दा पर चल, भले दुसर मन करंय हताश।
यद्यपि वर्तमान दुख देवत, पर भविष्य बर दिखत प्रकाश
मन्न प्रसन्न हृदय रख हरियर, बिपत तभो झन रहव उदास।”
सुद्धू अपन पुत्र ला देवत हवय उजागर रस्ता।
ताकि गरीबा के हो जावय हल्का दुख के बस्ता।
कथय गरीबा हा सुद्धू ला -“एक प्रश्न के उत्तर लान
तंय जानत निर्दोष हवंव मंय, होय मोर पर अत्याचार।
तंय हा मोला बोले रहितेस – शोषण करिन करिन अन्याय
उंकर साथ तंय हा टक्कर कर, क्रांति लाय बर कर संघर्ष।
पर तंय कायर असन झुके हस, तंय हा टोरत भरभस मोर
तोर नीति हा सही के गलती, बिन छल कपट भेद ला खाले?”
सुद्धू हा गंभीर बन कहिथय – “वर्तमान मं दिखत अनीति
पर भविष्य मं लाभ सुखी हे, छुपे रहस्य ला खोलत साफ।
कहां तोर तिर पद धन जन मन, कहां एक झन समरथ पूर्ण
अगर तंय अभिचे हमला करबे, तब परिणाम मं मिलिहय हार।
शोषण अत्याचार ला तंय सहि, जुटा जन समर्थन श्रम जोंग
जब हो जास पूर्ण सक्षम तंह, शोषक मन संग टक्कर लेव।
जब दुशमन के नसना मरिहय, हक ला पाहय हर इंसान
“सुम्मत राज” लाय बर सोचत, एकदम पूर्ण तोर उद्देश्य।”
सुध्दू हा जब भेद खाले दिस, पैस गरीबा सही जवाब
आगू डहर सफलता पाये , खोजत हवय उचित अस राह।
संगी, सुख दुख आथय जाथय, कतिक करन हम ओकर याद
गोठ पुराना सोचत बइठत, भावी जीवन हा बर्बाद।
जहां गरीबा टंच हो जाथय, तंहने अपन बजावत काम
खेत के मेेड़ साफ चतरावत, भिड़े तान नइ लेत अराम।
दसरु जउन करेला वासी, ओकर तिर आ ढिलत जबान –
“तोर समान कोन अउ दूसर, खरथरिहा महिनती किसान।
मुसकेनी बन दूब गोड़ेली, सांवा बदौर ला कर देस नाश
धान पेड़ मन रिहिन हें छट्टा, करे गसागस ओला चाल।
बेमची कुथवा अउ चिरचीरा, हेर मेड़ ला साफ बनात
सिरिफ काम झन देख लकर्रा, बइठ मोर तिर कर ले बात।”
चिखला हाथ गरीबा धोइस, आथय मुसकत दसरु – पास
कहिथय -“कहां कमावत हंव मंय, तंय फोकट झन चढ़ा अकास।
घास उठन नइ देत चरोटा, इहिच वजह चतरावत पेड़
यदि चारा बढ़ जाहय सनसन, धन मन खाहंय खूब खखेड़।
उदुप आय तंय तिसने पहुंचिस, सेना के एक अड़िल जवान
ओहर मुढ़ीपार के वासी, भारत नाम रिहिस हे जान।
ओहर मोला खभर बताइस – देश के ऊपर संकट आय
शत्रु राष्ट्र हा हक बताय बर, अपन फौज ला लान दंताय।
जेन हमर बर पाट के भाई , ओहर जबरन लड़ई उठात
ओकर ले अब लोहा लेहंव, टूट जाय रट भरभस गर्व।”
भारत ले मंय करेंव केलवली – युद्ध करे बर मोर विचार
जेवनी भुजा टपाटप फड़कत, करिहंव अरि के खुंटीउजार।”
“मितवा, तोर बोलना ठंउका, देश के नाम मं चढ़थे जोश
ओकर पुत्र मया डिग्री हम अन, जीवन रखिस सुरक्षित पोंस।
यदि सीमा मं सब डंट जाबो, करिहय कोन खेत मं काम
बिन अनाज सब झन पटियाबो, दुश्मन घुसर खींचिहय चाम।