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ग़फ़लत में ज़िन्दगी को न खो गर शऊर है / सौदा

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ग़फ़लत में ज़िन्दगी को न खो गर शऊर1 है
ये ख़्वाब ज़ेरे-साय-ए-बाले-तयूर2 है

शमओ-चराग़ गो कि मिरी शब से दूर है
तू घर में हो मिरे तो अँधेरा भी नूर है

दिल को मिरे है आहे-सेहर3 से शिग़ुफ़्तगी4
गुंचे को गुलसिताँ में सबा5 से सुरूर6 है

बुलबुल, चमन में तेग़े-निगाह किसके चल गयी
जिस गुल को देखता हूँ सो ज़ख़्मों से चूर है

हूरे-बहिश्त7 वाहमा8 तेरा है ज़ाहिदा9
लेकिन निगाहे-चश्मे-मुहब्बत10 में हूर है

क़ता:

मूसर के कुछ असा11 से कम अपनी असा को शैख़
गिनते नहीं, ये अक़्ल का उनमें वफ़ूर12 है
कंकर कहीं जो आये है उनके क़दम तले
'सौदा' उन्हें यक़ीं है कि ये कोहे-तूर13 है

शब्दार्थ:
1. चेतना 2. पक्षियों के पंखों के साये में 3. सुबह की आह 4. ताज़गी 5. ठंडी हवा 6. नशा 7. स्वर्ग की अप्सरा 8. भ्रम 9. ऐ ज़ाहिद (विरोधाभास में) 10. प्रेम भरी दृष्टि 11. डंडा 12. अधिक मात्रा में 13. तूर का पहाड़