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ग़म ए अन्जाम ए शादमानी से / ज़िया फ़तेहाबादी

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ग़म ए अन्जाम ए शादमानी से ।
दिल हिरासाँ है कामरानी से ।

निकहत ओ रंग ए गुल से क्या निसबत
मेरे ग़म से तेरी जवानी से ।

कारोबार ए हवस चला क्या क्या
जिन्स ए इखलास की गिरानी से ।

हुआ हमवार जादा ए मंज़िल
पा ए हिम्मत की सख्तजानी से ।

सोज़ भी अश्क ए ग़म में शामिल है
आग़ का मेल और पानी से ?

क्यूँ मेरा दिल धड़कने लगता है
कैस ओ फ़रहाद की कहानी से ।

सीख ली बुलबुलों ने नगमागरी
ऐ " ज़िया " तेरी ख़ुशबयानी से ।