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ग़म मुझे हसरत मुझे वहशत मुझे सौदा मुझे / सीमाब अकबराबादी

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ग़म मुझे हसरत मुझे वहशत मुझे सौदा मुझे|
एक दिल देके ख़ुदा ने दे दिया क्या क्या मुझे|
 
है हुसूल-ए-आरज़ू का राज़ तर्क-ए-आरज़ू,
मैंने दुनिया छोड़ दी तो मिल गई दुनिया मुझे|
[हुसूल-ए-आरज़ू= इच्छाओं का पूरा होना]
[तर्क-ए-आरज़ू= इच्छाओं को मारना]

कह के सोया हूँ ये अपने इज़्तराब-ए-शौक़ से,
जब वो आयेँ क़ब्र पर फ़ौरन जगा देना मुझे|
 
सुबह तक क्या क्या तेरी उम्मीद ने ताने दिये,
आ गया था शाम-ए-ग़म एक नींद का झोंका मुझे|
 
ये नमाज़-ए-इश्क़ है कैसा अदब किसका अदब,
अपने पाय-ए-नमाज़ पर करने दो सज़दा मुझे|
 
देखते ही देखते दुनिया से मैं उठ जाऊँगा,
देखती की देखती रह जाएगी दुनिया मुझे|