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ग़ुंचा-ए-दिल खिले जो चाहो तुम / वाजिद अली शाह

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 ग़ुँचा-ए-दिल खिले जो चाहो तुम
 गुलशन-ए-दहर में सबा हो तुम

 बे-मुरव्वत हो बे-वफ़ा हो तुम
 अपने मतलब के आश्ना हो तुम

 कौन हो क्या हो क्या तुम्हें लिक्खें
 आदमी हो परी हो क्या हो तुम

 पिस्ता-ए-लब से हम को क़ुव्वत दो
 दिल-ए-बीमार की दवा हो तुम

 हम को हासिल किसी की उल्फ़त से
 मतलब-ए-दिल हो मुद्दआ हो तुम

 यही आशिक़ का पास करते हैं
 क्यूँ जी क्यूँ दर-प-ए-जफ़ा हो तुम

 उसी अख़्तर के तुम हुए माशूक़
 हँसो बोलो उसी को चाहो तुम