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गाँव के नाम पाति / संदीप निर्भय

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मेरे प्यारे गाँव, यदि मैं कभी नहीं लौटा
गोधूलि बेला में कंधों पर लाठी लिए
चरवाहा या गड़रिये की तरह
बच्चों की किलकारियों की तरह
या सूरज उगने के साथ ही
छाछ, राबड़ी की सुगंध की तरह
तो तू समझ लेना—
कि देश की किसी नदी के किनारे
चम्पा-मेथी* के गीत सुनता हुआ मर गया है तेरा कवि!

*चम्पा-मेथी राजस्थान के शीर्ष लोक गायक दंपत्ति थे।