भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत-फूल फूले / रमेश रंजक

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:22, 11 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |अनुवादक= |संग्रह=किरण क...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुधियों की अरगनी बाँध कर सम्बोधन झूले
सहन भर गीत फूल-फूले

सर्वनाम आकर सिरहाने
माथा दबा गया
अनबुहरा घर लगा दीखने
फिर से नया-नया
तन-मन हल्का हुआ, अश्रु का भारीपन भूले

मिली, खिली रोशनी, अँधेरा
पीछे छूट गया
ऐसा लगा कि दीवाली का
दर्पण टूट गया
लगे दीखने तारे जैसे हों लँगड़े-लूले

हवा किसी रसवन्ती ऋतु की
साँकल खोल गई
होठों की पँखुरी न खोली
फिर भी बोल गई
सम्भव है यह गन्ध तुम्हारे आँचल को छू ले

दमक उठे दालान, देहरी
महकी क्यारी-सी
लगी चहकने अनबोली
बाखर फुलवारी-सी
झूम उठे सारे वातायन भीनी ख़ुशबू ले