भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत / नीलाभ

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:50, 2 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीलाभ |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लाल-लाल हो चला है, हो चला है आसमान
लपटों की लाली है, रात भले काली है, लाली है रक्त की
लाएगी नव विहान
रक्त बोले, लपट बोले, गाए
भीषण गान,

लाल-लाल हो चला है, हो चला है आसमान
आओ साथी सुर मिलाओ,
बारूदी राग गाओ,
छेड़ो समर तान, साथी गाओ भीषण गान

लाख-लाख कण्ठ से उठ रही है ये पुकार
मुक्ति चाही, जीवन चाहा, चाहा स्वाभिमान
लाल लाल हो चला है, हो चला है आसमान