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गीत 13 / छठा अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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अति उत्तम आनन्द सच्चिदानन्द ब्रह्म के पावोॅ
मन के सब विधि शान्त करोॅ जीवन के पाप नसावोॅ।
करोॅ रजोगुण शान्त
रजोगुण आसक्ति उपजावै,
आसक्ति से बढ़ै कामना
अरु फिर लोभ बढ़ावै,
बाढ़ै लोभ अपेक्षा जागै, जाल में नै ओझरावोॅ
मन के सब विधि शान्त करोॅ जीवन के पाप नसावोॅ।
देह न हय, हम चिदानन्द छी
बूझि क साधक ध्यावै,
पाप रहित रहि योगी
अपना के अर्पित करि पावै,
परमेश्वर में साँपि आप के, सहज परम सुख पावोॅ
मन के सब विधि शान्त करोॅ जीवन के पाप नसावोॅ।
भौतिक सुख कोनो सुख नै
यै सुख में भी दुख वासै,
एक परम सुख परमेश्वर छै
जीवन सदा प्रकाशै,
देखोॅ सुनोॅ कहोॅ ईश्वर के, अरु उनका अपनावोॅ
मन के सब विधि शान्त करोॅ जीवन के पाप नसावोॅ।