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गीत 13 / दोसर अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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महामोह दलदल से बुद्धि भली-भाँति जब पार करै।
जीव तियागै सकल भोग के, अरु वैराग्य स्वीकार करै।
सतसंगति से जब वैराग्य जगै
प्राणी के मोह हरै,
तब बुद्धि दृढ़-अचल बनै अरु
तब ईश्वर से नेह सगै
ईश्वर के संयोग, योग छिक, विज्ञ पुरुष आचार करै
जीव तियागै सकल भोग के, अरु वैराग्य स्वीकार करै।
योगारूढ़ कर्मगत प्राणी
कर्मयोग के पावै छै
चित्त करै स्थिर जोती में
ध्यान योग कहलावै छै
सिद्धि-असिद्धि में सम-बुद्धि रखि समत्व स्वीकार करै
जीव तियागै सकल भोग के, अरु वैराग्य स्वीकार करै।
योग साधि प्राणी जब सीधे
ईश्वरत्व के पावै छै
या, स्व में स्थित रहि खुद में
द्रष्टा भाग जगावै छै
मन-बुद्धि असथिर करि साधक मूलाधार आधार करै
जीव तियागै सकल भोग के, अरु वैराग्य स्वीकार करै।