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गीत 13 / नौवाँ अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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प्रेम सहित फल-फूल चढ़ावै भगत और हम पावै छी
राखै छी हम मान भगत के, प्रीत सहित अपनावै छी।
वरण-आश्रम भेद न जानैं
जाति-गोत्र नै मानैं,
धन-बल-रूप-आयु नै जानौं
गुण-विद्या नै मानों,
भगत भेद बुद्धि नै जानै, हम उनका अपनावै छी।
हम समझै छी प्रेम के भाषा
अरु भाषा नै जानौं,
सदा समर्पित वस्तु बीच हम
श्रद्धा-भाव पहचानौं,
श्रद्धा-भाव से देल वस्तु हम प्रेम सहित अपनावै छी।
जिनकर अन्तः शुद्ध न
बाहर खूब करै आडम्बर,
जिनका शिष्टाचार न अर्जुन
से न भगत छिक हम्मर,
उनकर उत्तम से उत्त्म वस्तु भी न हम अपनावै छी।
हम छी अगुण-अकार
प्रेम के बस हम देह धरै छी,
अपन अभिन्न मानि हम अपन
भगत से नेह करै छी,
पूर्ण समर्पण जे कैलक, उनका नै कभी दुरावै छी
प्रेम सहित फल फूल चढ़ावै भगत और हम पावै छी।