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गीत 19 / छठा अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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अर्जुन, तप नै कभी नसावै
पूर्वजन्म के संचित तप-फल योगी फिर से पावै।
पूर्वजन्म से भी बढ़ि कै फिर योगी जतन करै छै
फेरो सब इन्द्रिय समेट, संयम में हवन करै छै
पूर्वजन्म के संस्कार बस सब-टा दोष दुरावै
अर्जुन, तप नै कभी नसावै।
भ्रष्ट तपस्वी, जे तप-फल से उत्तम कुल में आवै
पूर्वजन्म के संस्कारवश, पुनः भक्ति के पावै
यद्यपि पावै जनम धनिक घर, तदपि न भोग फँसावै
अर्जुन, तप नै कभी नसावै।
धन-दौलत-स्त्री-पुत्र-सम्मान हमेशा फाँसै
पूर्वजन्म के संस्कार, सहजें ई सब के नासै
फँसै कभी नै विषय जाल में, मोह बाँधि नै पावै
अर्जुन, तप नै कभी नसावै।