भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीत 1 / तेरहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:28, 18 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजेता मुद्गलपुरी |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
श्री भगवान उवाच-
हय शरीर क्षेत्र कहलावै
जे जानै छै हय रहस्य के, से क्षेत्रज्ञ कहावै।
कहलन श्री भगवान कि अर्जुन, हय रहस्य जे जानै
उनका तों जानोॅ ज्ञानी जन, ऊ हमरा पहचानै
जे हमरा जानै हे अर्जुन, सहजे हमरा पावै
हय शरीर क्षेत्र कहलावै।
जेना खेत में छीटल बीहन समय पाय अँकुरै छै
वैसें तन में कर्म, बनी केॅ संस्कार प्रकटै छै
फेर जीव हय संस्कार के जोगै और बचावै
हय शरीर क्षेत्र कहलावै।
मन-बुद्धि आरो इन्द्रिय के ज्ञानी ज्ञेय कहै छै
ज्ञाता छिक चैतन्य-आतमा, हरदम सजग रहै छै
जैसन जिनकर संस्कार छै, से तैसन फल पावै
हय शरीर क्षेत्र कहलावै।