भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत 2 / सोलहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:41, 18 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजेता मुद्‍गलपुरी |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मानव के शुभ लक्षण जानोॅ
मन-वाणी आरो शरीर से निर्मल के पहचानोॅ।

जे कोनो विधि कभी किनकरो, तनियों नै पिरवै छै
जे सच बोलै, अरु प्रिय बोलै, नै अभिमान करै छै
नै अपकार करै वाला पर क्रोध करै छै जानोॅ
निर्मल मन जन के पहचानोॅ।

करै कर्म, अपना अन्दर नै कर्तापन जे आनै
जिनकर तनियों चित चंचल नै, सब में हमरा जानै
कभी करै किनको निन्दा नै, उनका जोगी जानोॅ
निर्मल मन जन के पहचानोॅ।

बिना अपेक्षा सब जीवोॅ पर, जौने दया करै छै
जे इन्द्रिय पर संयम राखै, सब आसक्ति तजै छै
कोमल हृदय, लोक हितकारी उत्तम चरित बखानोॅ
निर्मल मन जन के पहचानोॅ।

करै शास्त्र सम्मत सब कारज, किनको अशुभ न चाहै
लोक-लाज के रखै ध्यान जे, सब सँग नेह निमाहै
करै न कारज बेमतलब जे, उनका संत गुदानोॅ
निर्मल मन जन के पहचानोॅ।