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गीत 33 / अठारहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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गोपनीय रहस्य बतलैलौं, यै पर पाथ विचारोॅ
भली भाँति से चिन्तन करि केॅ, जे मन आवोॅ धारोॅ।
हे अर्जुन, गुह्यतम रहस्य के
तों छेकै अधिकारी,
फेर सुनौ तों ऊ रहस्य के
गुप्त वचन हितकारी,
तों हमरोॅ अतिशय प्रिय जन छेॅ, हितकर वचन स्वीकारोॅ।
तों मन हमरा में लगवोॅ
तों हमरोॅ भक्ति स्वीकारोॅ,
हमरोॅ पूजन करोॅ नित्य
हमरा पर तन मन वारोॅ,
पूजन-वन्दन-नमन करॉ नित, चित में हमरा धारोॅ।
प्रण रोपी हम सत्य कहै छी
तों हमरोॅ प्रिय जन छेॅ,
तों अन्तः चित से पवित्र छेॅ
सब विधि अति पावन छेॅ,
तों हमरोॅ छेॅ, हम तोरोॅ छी, अंतिम सत्य स्वीकारोॅ
गोपनीय रहस्य बतलैलौं, यै पर पार्थ विचारो।