गीत 38 / अठारहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
संजय उवाच-
संजय कहलक धन्य-धन्य हम दिव्य दृष्टि जे पैलौं
गोपनीय हम ज्ञान पाय जीवन के धन्य बनैलौं।
कृपा व्यास द्वेपायण के
जे हमरा समझल लायक,
आय समझलौं पूरे जग के
कृष्ण एक छिक नायक,
कृष्ण सुनैलन जे अर्जुन के, सहज भाव हम पैलौं
गोपनीय हम ज्ञान पाय जीवन के धन्य बनैलौं।
हे राजन, हय कृष्ण और
अर्जुन सम्वाद अनूठा,
एक सत्य बस कृष्ण चन्द्र छै
और जगत सब झूठा,
बेर-बेर सुमिरण करि केॅ हम चित के हर्षित कैलौं
गोपनीय हम ज्ञान पाय जीवन के धन्य बनैलौं।
हय रहस्य कल्याण के कारण
मन में अब घुरियावै,
कृष्ण नाम के छोड़ि केॅ हमरा
जग में कुछ नै भावै,
हे राजन श्री हरि के हम विराट रूप लखि पैलौं
गोपनीय हम ज्ञान पाय जीवन के धन्य बनैलौं।
बेर-बेर स्मरण करी
मन अचरज से भरि आवै,
दिव्य रूप के याद करी
मन बेर-बेर हर्षावै,
हय अहेतुकी कृपा पाय हे राजन जनम जुरैलौं
गोपनीय हम ज्ञान पाय जीवन के धन्य बनैलौं।
जहाँ योगेश्वर कृष्ण चन्द्र छै
वहिं अर्जुन धनुर्धारी,
तहिं पर विजय-विभूति अचल छै
सब जग मंगलकारी,
एक कृष्ण सब जग के स्वामी, सहज समझि हम पैलौं
गोपनीय हम ज्ञान पाय जीवन के धन्य बनैलौं।