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गीत 3 / आठवाँ अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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हमरा सुमरि युद्ध तों ठानोॅ
हमरा अर्पित करल कर्म हमरा भेंटत सच मानोॅ।

हे अर्जुन, हय वर्ण धर्म छिक, तों गाण्डीव उठावोॅ
वर्णाश्रम के धरम निभावी तों कर्त्तव्य निभावोॅ
वर्ण धर्म अनुरूप अपन दायित्व पार्थ पहचानोॅ
हमरा सुमरि युद्ध तों ठानोॅ।

हय नियम छिक कि प्रााी नित परमेश्वर के ध्यावै
करै सदा अभ्यास योग के, भोग न चित में लावै
परमेश्वर के भजोॅ निरन्तर दिव्य पुरुष के ध्यानोॅ
हमरा सुमरि युद्ध तों ठानोॅ।

जे सर्वज्ञ अनादि पुरुष छिक, जे छिक जगत नियंता
जे सूक्षुम से भी सूक्षम छिक, लोग कहै भगवंता
ऊ जग के धारक-पोषक के परम प्रकाशक जानोॅ
हमरा सुमरि युद्ध तों ठानोॅ।

सूर्य सरिस जे जगत प्रकाशक, सकल अविधा नासै
अलख-अगोचर-शुद्ध सच्चिदानन्द विवेक विकासै
ऊ परमेश्वर के नित, हर क्षण, तों सुमिरण में आनोॅ
हमरा सुमरि युद्ध तों ठानोॅ।

दिव्य पुरुष सब के हिय अन्दर, सब के हिय के जानै
पुरुष-पुरातन, सत्य-सनातन के विरले पहचानै
जगत नियंता, शक्तिमान के नित यश आप बखानोॅ
हमरा सुमरि युद्ध तों ठानोॅ।

जे समस्त ब्रह्मांड के धारक, जे पालक-पोषक छै
करै जगत के जे संचालित, अखिल लोक शासक छै
सूर्य समान प्रकाशवान जे, उनकरमहत् बखानोॅ
हमरा सुमरि युद्ध तों ठानोॅ।