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गीत 5 / सतरहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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अर्जुन, से सात्विक कहलावै
वैदिक विधि से यग करै जे, फल के भाव न लावै।
कोय श्रेष्ठ कहलावै लेली करि कै यग दिखावै
राखि कामना यग करै छै, से राजस कहलावै
वैदिक विधि से हीन यग, तामस के बहुत सोहावै
अर्जुन, से सात्विक कहलावै।
तामस प्राणी श्रद्धाहीन अरु मंत्रहीन यग जानै
करै यग दक्षिणाहीन, अरु दान धरम नै मानै
ढोंग कहै वैदिक विधान के, यग के फल नै पावै
तामस जन ढोंगी कहलावै।
देव-पितर-ब्राह्मण-गुरु-ज्ञानी के सात्विक जन पूजै
सरल स्वभाव पवित्र आचरण के दैहिक तप बूझै
वहेॅ अहिंसक जे वाणी से भी न कष्ट पहुँचावै
अर्जुन, से सात्विक कहलावै।