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गीत 6 / चौदहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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बढ़ै तमोगुण, अन्तः में तब अन्धकार व्यापै छै
अन्धकार-अज्ञान के बढ़ते ही, प्रमाद उपजै छै।
अप्रकाश अन्तः में बढ़तें
सब सतगुण के नासै,
सद्कर्मो के करै उपेक्षा
और प्रमाद विकासै,
मोह रूपि निन्द्रा, सद्गुण दिश आँख खुलेॅ नै दै छै।
क्षरण हुऐ स्मरण शक्ति के
आलस तन्द्रा बाढ़ै,
अ विवेक उपजै तब चित नै
सद् कारज में लागै,
पुरुष प्रमादी मोहग्रसित, दायित्व अपन बिसरै छै।
सतोगुणी नर मृत्यु पावि केॅ
स्वर्गलोक पावै छै,
रजोगुणी नर मृतयु पावि केॅ
मनुष देह पावै छै,
तमोगुणी मरि केॅ चौरासी लाख योनि भटकै छै
बढ़ै तमोगुण, अन्तः में तब अन्धकार व्यापै छै।