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गीत 6 / छठा अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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ध्यान के लेली हमेशा शुद्ध आसन चाहियोॅ
कुश-कम्बल-मृगछला सन सुआसन चाहियोॅ।
जे जगह नै ऊँच बेसी
या ने बेसी नीच हो,
हो कहीं पर्वत-गुफा में
या नदी के तीर हो,
या कि मंदिर, या तीर्थस्थल में सुआसन चाहियोॅ
ध्यान के लेली हमेशा शुद्ध आसन चाहियोॅ।
काठ या पत्थर के आसन
जे मुलायम भेॅ सकेॅ,
बैठ केॅ साधक जहाँ पर
ध्यान शुभ-शुभ केॅ सकेॅ,
और के आसन के नै उपयोग होना चाहियोॅ
ध्यान के लेली हमेशा शुद्ध आसन चाहियोॅ।
सहज आसन पर विराजी
थीर तब मन केॅ करेॅ,
इन्द्रिय के वश करी केॅ
ध्यान ईश्वर के करेॅ,
मन सदा एकाग्र, अन्तः शुद्ध होना चाहियोॅ
ध्यान के लेली हमेशा शुद्ध आसन चाहियोॅ।