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गीत 6 / बारहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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यदि मन थीर न हुए सकोॅ तब बनि जा कर्म परायण
कर से कर्म करोॅ जिह्वा से करोॅ निरन्त गायन।
जे भी कर्म करॉे सब टा के
हमरा करोॅ समर्पण,
राखोॅ हमरे आस, श्रद्धा से
कर्म करोॅ सब अर्पण,
दान यग अरु तप करि केॅ, पावोॅ तों भक्ति अनपायण।
यदि तों योग पंथ गहि केॅ
साधना न करि पावै छेॅ,
मन-बुद्धि पर विजय पाय
नै हमरा अपनावै छेॅ,
तब तों कर्म करोॅ, लेकिन फल हमरा करोॅ समर्पण।
मानव ‘कठपुतली’ छिक
कर्ता ‘सूत्रधार’ के मानोॅ,
कर्म करौ अरु निपट अकर्ता
अपना के तों मानोॅ,
और कर्म फल के दाता छिक जानोॅ एक नारायण
यदि मन थीर न हुए सकोॅ तब बनि जा कर्म परायण।