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गीत 7 / अठारहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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तीन टा छै कर्म प्रेरक, कर्म संग्रह तीन छै
ज्ञान-ज्ञाता-श्रेय ई प्रवृत्त कर्ता तीन छै।
देखना-सुनना-समझना
जीव के हय कर्म छै,
बुद्धि-मन अरु इन्द्रिय द्वारा क्रिया
सब कर्म छै,
करण-कर्ता अरु क्रिया, मनुष्य के हय धर्म छै।
गुण के संख्या, ज्ञान आरो
कर्म कर्ता तीन छै,
गुण के सम्बन्धी छिकै
सत् और रज-तम तीन छै,
ज्ञानि जन सब से पृथक परमात्मा में लीन छै।
एक छै परमातमा
सम भाव से सब में मिलल,
छै मिलल सब वस्तु में
सब जीव में सात्विक बनल,
छै वहेॅ कल्याणकारी, आतमा में लीन छै
तीन टा छै कर्म प्रेरक, कर्म संग्रह तीन छै।